सिर्फ पढ़े हैं
चांदनी की सफेद चादर पर
कुमकुम के कुंआरे गीत
दूर क्षितिज की ओर
रूपहले पनघट पर
पनिहारिनों की धुंधली परछाइयां
मेंहदी के जंगल में
पायल की रुनझुन
इंन्द्रधनुश का गुनगुन स्वर
गंधित पुरवाई में
मौंसम का गाया कोई फागुनी राग
मगर कभी भी
” न बोलते हुए फूलों को सुना है
न झमकती हुई ध्वनियों को देखा है ”
देखे हैं गहरी धंसी हुई
कांच की गोलियों-सी
बाइस बर्शीय आँखे
बेइमानो से काट ली जाने वाली
अधपकी फसलें
बारह बर्शीय बुजूर्गों का
पसीनें में महकता व्यापार
या फूलती साँस के सामान्य होने पर
याद आने वाला प्यार
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