जेठ की लहास भरी रातए तेज पछिया से उडी़ धूल और दुर्गन्ध से झंकोरी जाती रही। प्रेमदा ने रात की तमाम बेचैन गंधए दादी.सास की पुरानी पलंग परए करवट बदल कर वर्दास्त किया था। यूं तो असंख्य उलझनें उसकी नींद में छाता की कमानी.सी तनी ही रहती थीए तिस पर जेठ द्वारा उसका खेत हड़प लेने का लोभए आज उसे भीतर तक कँपा गया था। सच ही तो कहते हैं लोगए दुश्टों की नीति . पट्टिदार और अरहर की दाल जितना गले अच्छाए नहीं तो जेठ के इस तरह तंग करने का कोई कारण नहीं बनता। वह भी तबए जब पति की मृत्यु के घाव पर अभी पपड़ी भी न पड़ी है।
Thursday, 4 June 2015
एक और किस्त जिन्दगी
जेठ की लहास भरी रातए तेज पछिया से उडी़ धूल और दुर्गन्ध से झंकोरी जाती रही। प्रेमदा ने रात की तमाम बेचैन गंधए दादी.सास की पुरानी पलंग परए करवट बदल कर वर्दास्त किया था। यूं तो असंख्य उलझनें उसकी नींद में छाता की कमानी.सी तनी ही रहती थीए तिस पर जेठ द्वारा उसका खेत हड़प लेने का लोभए आज उसे भीतर तक कँपा गया था। सच ही तो कहते हैं लोगए दुश्टों की नीति . पट्टिदार और अरहर की दाल जितना गले अच्छाए नहीं तो जेठ के इस तरह तंग करने का कोई कारण नहीं बनता। वह भी तबए जब पति की मृत्यु के घाव पर अभी पपड़ी भी न पड़ी है।
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