Thursday, 4 June 2015

दादी की कहानी में -केतकी-




            गर्मी की छुट्टी की घोषणा के बाद पवन सिन्हा के परिवार के लिए वह एक हड़बड़ायी रात थी। बेटी वर्चश्वी के पाँव ने पारा पहन लिया था। गांव, घर जाना है। पके आम की महक चैत-बैशाख की चाँदनी में फूले अरहर और बची ईख के खेतों से बोलते सियार की आवाज-महानगरीय जीवन के एकदम उलट सबकुछ। न कहीं संगमरमर का शहर-मौजैक किए-कराए मन-न एक खास कटाव-तराश में ढला-आदमी । उन्मुक्त हँसी और पारदर्शी व्यवहार। गाँव का जीवन एक रसता तोड़ता है। हरी सब्जियाँ, गुड गन्ने का रस, पके आम, दूध, दही न जाने कितनी चीजों के साथ लोग मिलने आते हैं। उसकी मम्मी भी सस्ते स्वेटर कम्बल, कपड़े और ऐसी कितनी चीजें लेकर जाती है। -ताली आखिर दोनों हाथ से ही तो बजती है। इसी आपसी लेन-देन का नाम तो है दुनियादारी। आज उसे नींद न आएगी -टेªन की सीटी से पूरी रात गूंजती रहेगी। शैलाभ शिथिल हो गया था। कहाँ से आएगा टेलीविजन? कहाँ खेलेगा वह वीडियों गेम? कैसे देख सकेगा मैच और क्या होगा। दोस्तों के साथ उसकी मटरगश्ती का? सो वह चुप और उदास।

-----

No comments:

Post a Comment