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बेटिकन के पोप की प्रिय पुत्री भर नहीं !
बीसवीं सदी की डबडबायी आँख
राहत-सी
उपेक्षितों की मँा
कभी नहीं मरती
होती है अंधेरे में धु्रव तारा
स्मित अधरो के प्रभा मंडल तक
उतरती हुई सफेद कबूतरों के झुंड के झुंड
पसीजती पलकों की कोरों पर ही
कम कर जाती है
करोड़ों षरणार्थी षिविरों की करुणा
लियोनार्डो-दा-विंचि की कल्पना को
आकार देती है
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