Thursday, 4 June 2015

बंजर सदी के अंत में




जब सिनेमा से चालित हो समाज
टी.वी. से चिपके हों
चेहरे और आँख
चकोड़ा चैनलों से उतरकर
हर घर-आंगन में पसर रहे हों
खूबसूरत खतरे
जब पुराने हो गए हो
संस्कार और षास्त्र
रद्दी की जगह जला लिए गए हो
षील और सिद्धांत  

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