घर आँगन कि दीवारों पर
अल्पना-सी कढ़ी होती है बहनें
अकाल में भी उत्सव-सी हरी होती है बहाने
होने पर क्षितिज-सी भरी
साथ न होने पर भी
अनुभूतियों के इर्द-गिर्द
चौहद्दी-सी धरी होती हैं बहनें .
अल्पना-सी कढ़ी होती है बहनें
अकाल में भी उत्सव-सी हरी होती है बहाने
होने पर क्षितिज-सी भरी
साथ न होने पर भी
अनुभूतियों के इर्द-गिर्द
चौहद्दी-सी धरी होती हैं बहनें .
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