Monday, 3 October 2011

सपने में गावँ

मैं जाना चाहता हूँ गावँ
जहाँ पूजी जाती थी गाय की भी कोख
बहू वाले सपनों कि तर्ज पर
और बेटियों की तरह
पला गया था ईमान
पता नहीं, वह गावँ कहीं है भी कि नहीं.

No comments:

Post a Comment