Monday, 3 October 2011

बेटियॉँ

मेरी कटोरी भैया की कटोरी से छोटी क्यों ?
सब मुझसे ही क्यों छिपाते है सारी चीजें क्यों कहते है पराया धन.
मैं भी चाँद पर जाऊँगी,
तुम्हे कल्पना चावला-सा बन कर दिखाउंगी.
मै  क्यों नहीं चुन सकती अपना फ्रोक
मै भी बांधूंगी फूलो का मफलर
लोहे का दस्ताना पहनूंगी
चौपेत के धार दूँगी चेहरा
जो  कोई देखेगा टेढ़ी नजर.
क्या बुराई है जींस में
कौन बचाएगा मुझे जो कभी
बस कि भीड़ में गर्दन में फँस जाएगा दुपट्टा
पाँव में जितने बंधोगे बेडियाँ
मन में उतने ही उगेंगे पंख
सब बकवास करते है
कि बस बेटों से निहाल होने की बात करते है.

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