Monday, 3 October 2011

बालिकाएँ

बालिकाएँ चप्पल नहीं पहनती स्कूल जाते समय जैसे सब्जी नहीं खोजती, कभी खाते समय सुनती है चुप-चोरी कहानियाँ गावँ कि देवी जी को बतियाते और बोती है है घर-घर, जैसे अकावन सेमल, बंगा के बीज. बोती है हवाएँ
रूई कि तरह उड़ती है. जंगलो में भी वस्ती बनाती है. और सीखती है लिखना ताकि हर हाल में लिख सके ' हाल अच्छा है.'

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