जीवन में जो और कुछ नहीं हो सकते है वे नेक हो जाते है.
Monday, 3 October 2011
पहले रास्ते नहीं बनाये जाते . कदम उठाये जाते है. महत्वपूर्ण तो पहला कदम ही होता है जो आखिरी कदम तक कासलीका तय करता है और पहले कदम से अंतिम कदम का रिश्ता तो अपने आप बन जाता है.
बेटियॉँ
मेरी कटोरी भैया की कटोरी से छोटी क्यों ?
सब मुझसे ही क्यों छिपाते है सारी चीजें क्यों कहते है पराया धन.
मैं भी चाँद पर जाऊँगी,
तुम्हे कल्पना चावला-सा बन कर दिखाउंगी.
मै क्यों नहीं चुन सकती अपना फ्रोक
मै भी बांधूंगी फूलो का मफलर
लोहे का दस्ताना पहनूंगी
चौपेत के धार दूँगी चेहरा
जो कोई देखेगा टेढ़ी नजर.
क्या बुराई है जींस में
कौन बचाएगा मुझे जो कभी
बस कि भीड़ में गर्दन में फँस जाएगा दुपट्टा
पाँव में जितने बंधोगे बेडियाँ
मन में उतने ही उगेंगे पंख
सब बकवास करते है
कि बस बेटों से निहाल होने की बात करते है.
सब मुझसे ही क्यों छिपाते है सारी चीजें क्यों कहते है पराया धन.
मैं भी चाँद पर जाऊँगी,
तुम्हे कल्पना चावला-सा बन कर दिखाउंगी.
मै क्यों नहीं चुन सकती अपना फ्रोक
मै भी बांधूंगी फूलो का मफलर
लोहे का दस्ताना पहनूंगी
चौपेत के धार दूँगी चेहरा
जो कोई देखेगा टेढ़ी नजर.
क्या बुराई है जींस में
कौन बचाएगा मुझे जो कभी
बस कि भीड़ में गर्दन में फँस जाएगा दुपट्टा
पाँव में जितने बंधोगे बेडियाँ
मन में उतने ही उगेंगे पंख
सब बकवास करते है
कि बस बेटों से निहाल होने की बात करते है.
बहनें
घर आँगन कि दीवारों पर
अल्पना-सी कढ़ी होती है बहनें
अकाल में भी उत्सव-सी हरी होती है बहाने
होने पर क्षितिज-सी भरी
साथ न होने पर भी
अनुभूतियों के इर्द-गिर्द
चौहद्दी-सी धरी होती हैं बहनें .
अल्पना-सी कढ़ी होती है बहनें
अकाल में भी उत्सव-सी हरी होती है बहाने
होने पर क्षितिज-सी भरी
साथ न होने पर भी
अनुभूतियों के इर्द-गिर्द
चौहद्दी-सी धरी होती हैं बहनें .
बालिकाएँ
बालिकाएँ चप्पल नहीं पहनती स्कूल जाते समय जैसे सब्जी नहीं खोजती, कभी खाते समय सुनती है चुप-चोरी कहानियाँ गावँ कि देवी जी को बतियाते और बोती है है घर-घर, जैसे अकावन सेमल, बंगा के बीज. बोती है हवाएँ
रूई कि तरह उड़ती है. जंगलो में भी वस्ती बनाती है. और सीखती है लिखना ताकि हर हाल में लिख सके ' हाल अच्छा है.'
रूई कि तरह उड़ती है. जंगलो में भी वस्ती बनाती है. और सीखती है लिखना ताकि हर हाल में लिख सके ' हाल अच्छा है.'
पाखियो का झुंड
लाँघ गया सफे पाखियो का झुंड
डूबते सूरज की लाली
सावन है सुख
सुख बादल है....................
डूबते सूरज की लाली
सावन है सुख
सुख बादल है....................
सपने में गावँ
मैं जाना चाहता हूँ गावँ
जहाँ पूजी जाती थी गाय की भी कोख
बहू वाले सपनों कि तर्ज पर
और बेटियों की तरह
पला गया था ईमान
पता नहीं, वह गावँ कहीं है भी कि नहीं.
जहाँ पूजी जाती थी गाय की भी कोख
बहू वाले सपनों कि तर्ज पर
और बेटियों की तरह
पला गया था ईमान
पता नहीं, वह गावँ कहीं है भी कि नहीं.
मिठास जिनके लिए ईश्वर की तरह अजनबी है
बाएँ का रास्ता
उन फूल वाले इलाकों को जाता है
जहाँ खड़े दरख्तों में चाटते हैं
मधुमक्खियों के जिन तक जाना
और आग को माध्यम बनाना मौसम का कर्ज है.
उन तमाम लोगो पर
मिठास जिनके लिए ईश्वर की तरह अजनबी है
उन फूल वाले इलाकों को जाता है
जहाँ खड़े दरख्तों में चाटते हैं
मधुमक्खियों के जिन तक जाना
और आग को माध्यम बनाना मौसम का कर्ज है.
उन तमाम लोगो पर
मिठास जिनके लिए ईश्वर की तरह अजनबी है
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