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कहानी: कैसे
__रामेश्वर द्विवेदी
जीत नाम था उसका। पिता पंजाबी के प्राध्यापक रहे थे। शुचिता उसे विरासत में मिली थी। अब याद नहीं कि उसने पूरे नाम में 'जी' के पहले 'सर्व' या 'दल' या 'दिल' था परंतु मुझे उसका व्यक्तित्व पूरा, पर नाम आधा ही पसंद था । जब फोन मे पहली बार मे मैंने उसे जीत पुकारा वह चौंक गया था -
"सर जी ! मेरे पाजी से बात हुई क्या ? नंबर दिया था न मैंने, वे मुझे जीत ही बुलाते हैं। "
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